Ek Aag ka Dariya
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ISBN 978-8193343067
- टाईटल : एक आग का दरिया
- Title : Ek Aag ka Dariya
- Author : Harsh Ranjan
- Publisher : Author’s Ink Publications (1 January 2017)
- Language : Hindi
- Print length : 190+ pages
- Story Collection of 10 Stories
- Versions : E-Book and Paperback
- Paperback available on Amazon and Flipkart
- Fiction
Description
‘शाम की चाय तक’ से उद्धृत
“नाश्ता तो तुमने किया नहीं और अब चाय के वक्त बाहर…”
संभवतः यही कहने के लिए वह पीछे.पीछे आ रही थी पर दरवाजा पार करते.करते रूक गई। आज इतनी देर में उसके शरीर, उसके दिमाग के साथ पता नहीं क्या-क्या हो गया जो उसे बिल्कुल से तोड़ गया। उसने दूसरे कमरे का रूख किया और दरवाजा बंद कर लिया। उसे लगा कि शायद यहाँ उसे पर्याप्त एकांत मिलेगा पर जैसे कि अचानक ही आंधियाँ चलने लगीं एक भीड़ सौ कोलाहल हजारों शब्द, बेशब्द, अर्थ, बेअर्थ, बेतरतीब हँसी, फंदे, फंदे, छोटे-बड़े, हर तरफ से घेरे, कितना तिरस्कार हर बार हर बार सबपर अमित की वही अजीब नजरें, वही अजीब मुस्कुराहट, उसे लगा कि यह सब उसके टुकड़े-टुकड़े शरीर और मन को धूल की तरह बिखने लगे हैं। उसकी समझ में तब कुछ और नहीं आया, बस जैसे कि सहारे के लिए हाथ हर चीज़ को टटोलते हैं, उसकी नज़र के सामने वही कुछ टूटी और कुछ साबुत चूड़ियाँ आईं। उसने कुछ को मुट्ठियों में दाबा जैसे कि उसे अपनी पकड़ पर भरोसा नहीं हो और तेज कदमों से अमित वाले कमरे में गई। वह अभी नहीं आया था। सिमी ने चूड़ियाँ के छोटे.छोटे टुकड़े कर किए और किसी अनजानी शक्ति के वशीभूत होकर उसने उन टुकड़ों को बिछावन पर बिखेर दिया।
अमित अभी तैयार होकर बाहर नहीं आया था। सिमी बिल्कुल से बेदम होकर पलंग से सिर टिकाकर जमीन पर बैठ गई।
बाहर की हलचल में अभी-अभी भाभी की आवाज सुनाई पड़ी थी, शायद वह अब… अब दरवाजा खटखटाएँगी।
सिमी उठकर खड़ी हुई।
भाभी ने दरवाजा खटखटाया- ‘सिमी!’
सिमी ने जवाब दिया और मुड़कर देखा तो दूसरे तरफ से अमित की आहट भी आ रही थी। उसकी नज़र बिछावन पर पड़ी चूड़ियों पर गई और वह दरवाजे की तरफ बढ़ी तो लगा जैसे कि आवाज आयी कुछ टूटने की सी … या टूटने की उस चरम सीमा से सवाल पूछते गुजरने सी। उसने इसे जानकर भी अनजाना कर दिया- ‘हाँ, आ रही हूँ!’
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