Papa Pigibank Paitrik: Sanchit
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- टाईटल : पापा पिगीबैंक पैतृक संचित
- Title : Papa Pigibank Paitrik Sanchit
- Author : Harsh Ranjan
- Publisher : The Digital Idiots
- Language : Hindi
- Print length: 92pages
- Second Part of One complete Novel
- Versions : E-Book
- Fiction
Description
‘ पापा पिगीबैंक पैतृक : संचित ‘ से उद्धृत
ज़िंदगी लंबी हो गयी… बच्चों का बड़ा होना और फिर उसके बाद ये भटकाव… ये रास्ते…. अभी लगता है कि कल ही सीमा को देखने लोग आए थे जिसके बाद सभी अपने-आप से नाराज पाये गए। लगता है कि बस एक दिन का अंतराल गुजरा हो दोनों बहनों की मेहनत का… इतनी मेहनत के बाद तो सफल होना उनका अधिकार है लेकिन भगवान ने क्या सोचा है, उनकी क्या योजना है , वो भगवान ही बेहतर जानते हैं।
कुछ नहीं ठहरता है, न अच्छे दिन और न बुरे दिन और न ऐसे दिन जो न तो अच्छे माने जा सकते हैं और न बुरे।
चाहतें हमेशा चाहतें नहीं रहती और न एक ही चाहत हमेशा चाहत बनी रहती है। इतने दिन इस धरती पर गुजारकर ऐसा जरूर भान हुआ कि सब कुछ बदलता है… जहां घर था वहाँ अब घर नहीं है… जहां कल कुछ नहीं था वहाँ अब संसार है… जो नहीं थे आज वो बच्चे बड़े हो गए और जो वो नहीं थे शायद आज वो, वो बन गए। बस समय को गुजरता हुआ देखिए और अपने अनौचित्य पर असंतोष कीजिये।
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