Parchhaiyon Ke Peechhe: Prarambh
-
ISBN 978-8193827192
- टाईटल : परछाईयों के पीछे : प्रारम्भ
- Title : Parchhaiyon Ke Peechhe: Prarambh
- Author : Harsh Ranjan
- Publisher : Author’s Ink Publications (8 March 2019)
- Language : Hindi
- Print length : 250+ pages
- Novel Series : 1st Part
- Versions : E-Book and Paperback
- Fiction
Description
‘परछाईयों के पीछे : प्रारम्भ’ से उद्धृत
लोगों के बीच लोगों को उसने जितना समय दिया है, यही समय आज तक उसने अपने आप से छीना है। अपने और औरों को जोड़ने पर उसकी यात्रा कम से कम अढ़ाई साल की देर बता रही है।
रवि छत पर टहल रहा है। समय हो रहा है, पौने बारह का। अच्छी भींगी रात है, लोग उससे ज्यादा आशा नहीं करेंगे कि वो छत पर खड़ा – खड़ा कब तक मुहल्ले के घरों की रखवाली करेगा। वैसे वो रखवाली कर भी नहीं रहा है। संभवतः उसने पहली बार छत पर टहलते हुए इस छत को नापा है, कुल सत्रह कदम थे। अगली बार टहलते हुए उसने कदम छोटे किए है, संख्या तो कुछ बढ़ी पर संतोष नहीं। ऐसे छोटे-मोटे मजाक तो खुद से करना उसकी आदत और उसका शौक भी है उसके इन मजाकों ने उसे और पता नहीं किसे – किसे जिंदा रखा है आज तक।
ऐसा प्रतीत हुआ कि सारी रात जमा होकर उसके छत पर, उसके घर की दीवारों पर जमाहो गयी है। उसने अंगुली से उसे साफ करना चाहा तो वैसे ही एक छोटा सा विचार आया कि उसे खुद पर उतना ही भरोसा है जितना कि डूबती नाव के मल्लाह को अपने तैराकी के कौशल पर होता है, वो पार कर जायेगा।
इससे ज्यादा आशा की यहाँ किसी और को कोई जरूरत नहीं है। सब कुछ कहा नहीं जा सकता। कुछ कहने के बाद तक बचा रह जाता है और उसे कहने के लिये शब्द नही मिलते हंै। ऐसी बातों के लिये क्या सोचा जाये अब?
उसे लगा कि एक कोने पर बैठ कर सब कुछस्थिर नजरों से देखा जाये। वो मानता है कि ये कोई एक नक्शा है जो इस अंधेरी रात में दृश्यों को जोड़कर ईश्वर ने उसके सामने ला रखा है ….. यहाँ उसे कुछ मिल सकता है।
वो छत के पिछले कोने पर गया और बड़े ही उस्तादी अंदाज से उछलकर रेलिंग पर बैठ गया। बैठकर उसने नजर चारों ओर घुमायी और जायजा सा लिया कि कोई ऐसी ही आकृति सैकड़ों लोगों के मुहल्ले में किसी की छत पर दिख रही है और अगर दिख रही है तो वो उसे क्या मानेगा!
शायद सूई सीधी हो गयी हो। उसे अंदाज था। उसे ये भी पता था कि अब भूत-पे्रतों का टाईम शुरू हो रहा है और उन्हें किसी की कोई खलल पसंद नही है, लिहाजा ………..
उसे वापस चलना चाहिये। उसने वापस नीचे जाने के लिये कदम बढ़ाये। आगे बढ़ते हुए उसने बस एकबार पीछे मुड़कर देखा। अंजाने ही रात में बनायी उसकी इस छोटी सी दुनिया से जाने का अफसोस उसे जरूर था पर वो लौटा।
वो नीचे कमरे में चला आया। उसे किसी तरह की शंका नहीं थी कि कल सुबह होगी। सूरज दिखेगा ? …..! ये अलग बात है।
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.