Parchhaiyon Ke Peechhe : Poorvsandhya
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- टाईटल : परछाइयों के पीछे ‘पूर्वसंध्या’
- Title : Parchhaiyon Ke Peechhe ‘Poorvsandhya’,
- Author : Harsh Ranjan
- Publisher : The Digital Idiots
- Language : Hindi
- Print length: 336 pages
- Fourth Part of A Novel,
- Versions : E-Book
- Fiction
Description
परछाइयों के पीछे ‘पूर्वसंध्या’ से उद्धृत
रवि कछ क्षण दुर्गा पूजा का उतरता पंडाल देखता रहा। इधर-उधर बांस बिखरे पड़े हैं। पंडाल का कपड़ा हवा में लहरा रहा है। इक्के-दुक्के लोग कहीं-कहीं खड़े
हैं।
-दुर्गापूजा की तरह एक दिन मैं भी गुजर जाऊंगा।
गिरिजा उसकी आँखों में देख रही है।
-कभी-कभी मन करता है कि कमरा बंद करके खूब रोऊँ। रोता रहूँ । रोता-रोता मर जाऊँ!
गिरिजा कुछ कदम पीछे हट गयी जैसे इस लड़के को पहचान नहीं पा रही हो। फिर जैसे कि उसे लगा कि यहाँ सिर्फ वही है जो उसे सुन रही है और समझ
रही है, वो हिम्मत से आगे बढ़ी- अभी चल बेटा नीचे। कल रात में भी कुछ नहीं खाया तूने! चलकर देख तो सही, क्या बनाया है मैंने !
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