Kis Paar
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ISBN 9788193827147
- टाईटल : किस पार
- Title : Kis Paar
- Author : Harsh Ranjan
- Publisher : Author’s Ink Publications (23 September 2018)
- Language : Hindi
- Print length : 120 pages almost
- Poetry Collection
- Versions : E-Book and Paperback
- Paperback available on Amazon and Flipkart
Description
‘इस साये के तले’ शीर्षक कविता से उद्धृत:
मेरे दोस्त !
तुम्हारी बुझी आँखों में
मुझे
उस भारत की तस्वीर दिखती है ,
जिसमें
रंग भरने को
ना जाने कितनी किस्तों में
कितनों ने
लहू बहाए हैं ।
मुबारक हो ये रंग
तुम्हें
और उन्हें
जिनके खेतों की खड़ी फसल
इस इंसानी आग ने
जलाए हैं ।
भूली मंजिले,
भटकाती राहे ,
शरीर तोड़ती चोटें
और
निहायती ठंडी आहें!
इनमे उलझे
कल तुम्हीं तो मिले थे
अंधेरी रात ,
सूने रास्ते पर
जूतों से गर्द उडा़ते ,
हंसते-हंसते
कोई उदास गीत गाते !
कहाँ खो दिए
वो सुकुमार शरीर ,
भोली मुस्कराहटे,
आँखों का रंग ,
बचकानी चाहते?
समूचा शहर जला दिया !क्यो?
तुम्हारे जैसे कितने सुनहरे सपने
आसमान से टूटकर
बेसहारा ,बिखरकर
इस आग में गिर पड़े !
सब कुछ छिन गया !
जरूरतें मिट गयीं ,
गया तुम्हारा शौक,
तुम्हारे अरमान;
कट गए तुम्हारे पर ,
टूट गया तुम्हारा आसमान !
तुम्हारे अरमानो के प्रेत ,
तुम्हारा यह पिंजर
बलिदान नहीं
अभी बस मौत है ।
मेरे दोस्त !
अपने चिता की एक चिंगारी
मुझे दे दो !
इस पाप की लंका के लिए
बस इतना ही काफी है ।
ये सारे लुटेरे मारे जाऐगे ,
सारे अंधेरे दूर हो जाऐगे
क्योंकि
अब तक की उस समझ को
हमने दूर करने का
प्रण लिया है
जो लहू की कीमत को
लहू बहने के डर से जोड़ती थी ।
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