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Shayari 306×220

जून सेशन 2012

एक अकेला आदमी
उम्मीद के साथ खड़ा है
मैं आदतन उसके पीछे
खड़ा हो रहा हूँ।
न! ये उसकी, मेरी
या हमारी मजबूरी नहीं है।
एक अकेली आस को
जिंदा और किसी के लिए चुनिंदा
बने रहने के लिए
कहीं ज्यादा ताक़त चाहिए!
हो सकता है गलतफहमी हो
टूटे मेरी बला से, किसे फिक्र है!
पर मेरी साँसों के बाद!
मुझे दाता से बस इतनी राहत चाहिए!

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